एक माँ की व्यथा

It is said that a true writer is able to put himself or herself in others’ shoes and is able to feel the emotions that the person might be going through. This is the first time I am taking this liberty to venture out into doing the above. And what better place to start then being someone because of whom, today I am here writing this very blog. This one is dedicated to all the mothers who are away from their sons and want just one thing from life and that is to see their sons come back to them.It is titled एक माँ की व्यथा.

कभी कभी आप को खुद नहीं पता होता कि ज़िन्दगी आपको किस तरफ लिए जा रही है. सात साल पहले की बात है, हवाई अड्डे पर खड़े हुए अपने बेटे को दूर जाते देख, मुझे इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि जिस बेटे को मैंने २५ साल से पाल पोस कर इतने नाजों से बड़ा किया, उससे मिलना तो दूर बात करना भी मुश्किल होने वाला था.

विदेश जाने का निर्णय स्वयं मेरे बेटे का ही था. ना चाहते हुए भी मुझे उसके विदेश जाने के पीछे छिपे उसके उद्देश्य के समक्ष झुकना ही पड़ा. मुझे पता था की वो विदेश क्यों जाना चाहता है. अक्सर ऐसा होता है की एक इस्त्री अपने पति और अपने बेटे के बीच में दब कर रह जाती है. तब वो सही और गलत के बीच फैसला नहीं करना चाहती. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

मेरे पति एक इमानदार सरकारी अफसर थे. अपने कार्यकाल में उन्होंने कोई गलत कार्य करके पैसे कमाने का प्रयास नहीं किया था. यूँ तो उनकी इमानदारी के चर्चे हर जगह थे, परन्तु इस इमानदारी से हमारे घर की स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी नहीं रहती थी. कहने को तो हमारे पास जीवन में वो सभी आवश्यक सुविधाएँ थी जिनसे जीवन आराम से चल पाता, परन्तु एक माँ के नाते मैं ये जानती थी कि मेरे बेटे को वो सारी चीज़ें मैं उपलब्ध नहीं करा पाती हूँ जिनकी उसको चाह थी. मुझे पता था कि आस पास के बच्चों को आधुनिक खिलौनों के साथ खेलता देख कर  मेरे बेटे में भी उन सभी चीज़ों को पाने कि इच्छा होती थी.

कभी ये कहके कि पापा तुम्हारे लिए जल्द ही वो खिलौने लायेंगे तो कभी उसे दूसरे और सस्ते खिलौने दिलाकर मैं उससे ज्यादा खुद को सांत्वना देती और उस रात अपने बेटे कि इच्छाओं को पूरा ना कर पाने के कारण जी भर के रोती. अपने पति के उसूलों के सामने एक माँ को अपनी हार स्वीकार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होता था.

मुझे पता था कि मेरा बेटा अपने बच्चों को इस आभाव में नहीं पालना चाहता था. वो अपने बीवी बच्चों को वो सारे सुख देना चाहता था जो शायद उसको अपने जीवन में नहीं मिले. अच्छी बात ये थी कि वो किन्ही गलत कार्यों का सहारा लेकर नहीं करना चाहता था. परन्तु इसके लिए उसको लगता था कि उसका विदेश जाना अनिवार्य है. ऐसा भी नहीं था कि वो अपने माँ-बाप के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करना चाहता था. वो चाहता था कि वो अपने पूरे परिवार को विदेश में बुला ले और वही बस जाये.

लेकिन यहाँ भी एक माँ को अपने पति और बच्चे के बीच में चुनाव करना पड़ता. जहाँ एक ओर मेरे पति भारत में ही बसना चाहते थे वही दूसरी ओर मैं दोनों के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहती थी, चाहे वो भारत हो या विदेश, मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था. एक बार मैंने हिम्मत कर अपने पति से भी इस विषय में बात करनी चाही.

मुझे लगता है कि हमें भी विदेश चलना चाहिए. आखिर बेटे की ख़ुशी में ही तो हमारी ख़ुशी है”, मैंने अपने पति के समक्ष प्रस्ताव रक्खा.

इतने सालों से अपने पति को जानने के पश्चात भी तुम ऐसा कैसे पूछ सकती हो. मैं यहीं पे रहके अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ. तुम्हारा बेटा ये क्यों नहीं समझता कि उसे यहाँ पे भी अच्छी नौकरी मिल सकती है. पता नहीं क्यों उसे विदेश का भूत सवार हो गया है,” मुझे पता था कि मेरी तरफ मेरे पति द्वारा कैसे कटु शब्द आने वाले हैं, फिर भी मैं एक बार प्रयास करना चाहती थी.

आपने कभी सोचा है कि आप का बेटा क्या चाहता है. आखिर उसकी भी तो ज़रूरते हैं. वो भी तो अपना जीवन अपने अनुसार व्यतीत करना चाहता है. हमें उसकी हिम्मत बढानी चाहिए. और यहाँ आप उसके लक्ष्य में बाधा बन्ने का सुझाव दे रहे हैं.” मैंने अपने पति को समझाना चाहा. 

मैं कहाँ बाधा बन रहा हूँ. मैं तो केवल इतना कह रहा हूँ कि मैं नहीं जाऊँगा. बाकी किसी को जाना है तो वो जा सकता है.” मेरे पति से मुझे ऐसे ही उत्तर की उम्मीद थी.

ना उसके बाद कभी मैंने अपने पति को समझाने का प्रयत्न किया और ना ही अपने बेटे को रोकने का. मुझे पता था कि वो नहीं रुकेगा और मैं उसे किसी प्रकार का दुःख नहीं पहुचाना चाहती थी. इसलिए उस दिन हवाई अड्डे पे मैंने उसे हसी ख़ुशी ख़ुशी विदा किया. बहुत प्रयास कर पाने पर भी मैं अपनी आँखों से उन बहती हुई आसूं कि लड़ियों को नहीं रोक पायी. मन ही मन में जहाँ एक ओर मैं अपने बेटे को दुआएं दे रही थी, वही दूसरी ओर उसके दूर चले जाने का आभास मुझे अत्यंत कमज़ोर बनाये जा रहा था.     Image

घर लौटने के बाद एक ऐसे खाली पन का एहसास हुआ, मानो मेरा जीवन व्यर्थ हो गया हो. उस रात अपने पति के सो जाने के पश्चात मैं अपने बेटे के कमरे में गयी. अभी तक इस सत्य को मैं मान नहीं पाई थी कि मेरा बेटा मुझसे दूर चला गया है. उसके तकिये को पकड़ के मैं फूट फूट कर रोने लगी और ईश्वर से एक ही मिन्नत करती रही कि वो मेरे बेटे को विदेश में खुश रक्खे, साथ ही साथ मन में ये भी चाह थी कि वो जल्द घर लौट आये.

थोड़ी देर वही बैठ के उन पलों के बारे में सोचती रही जब मैंने अपने बेटे को अपने हाथों में पहली बार लिया था. उसके छोटे छोटे हाथों ने जब मेरी पहली बार ऊँगली पकड़ी थी. जब मैंने उसे पहली बार चलना सिखाया था. पहली बार जब मैं उसे स्कूल छोड़ने गयी. पहली बार जब मैंने उसे खेल प्रतियोगता में जीतता देखा. वो दृश्य, जब मैं अपने बेटे को उसके कमरे में खाना लाके देती थी और उसके पढाई करते समय सर पे तेल रखती थी, मेरे आँखों के सामने मानो वास्तविक रूप में चलते दिखाई दिए.

यही सोचते सोचते मुझे पता भी नहीं चला कि मैं कब सो गयी. सुबह जब मेरी आँख खुली तो वास्तविकता एक बार फिर मेरे समक्ष थी. ज़िन्दगी फिर से उसी प्रकार चलानी थी. अपने पति को फिर एक बार दफ्तर के लिए रवाना करना था और घर के सारे कार्य पूरे करने थे.

दिन बीते और फिर साल. धीरे धीरे मैंने अपने मन को ये कहके मना लिया कि जल्द ही मेरा बेटा विदेश से पैसा कमा कर वापस आ जायेगा. मुझे अनेक लोगों ने, कुछ ने व्यंगपूर्वक तो कुछ ने सांत्वना देते हुए, ये कहा कि एक बार जो विदेश चला जाता है वो लौट के वापस नहीं आता. पर मेरा मन इस बात को मानने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं था कि मेरा बेटा वापस नहीं आएगा. उन सभी लोगों को बिना कुछ कहे मैं ईश्वर से यही मानती कि वो मेरे पास वापस आ जाये.

शुरू शुरू में मेरे बेटे का फ़ोन रोज़ ही आ जाया करता था. धीरे धीरे वो भी अपने काम में इतना व्यस्त हो गया कि फ़ोन का आना रोज़ से हफ्ते में एक दिन हो गया और फिर हफ्ते से महीने में एक दिन. देखते ही देखते सात साल बीत गए. जहाँ एक ओर मुझे उसके वापस आने कि चाह रहती वहीँ दूसरी ओर मुझे लगता कि वो अकेला वहां कैसे अपना जीवन व्यतीत कर रहा होगा.

वैसे तो जीवन से कोई शिकायत नहीं है मेरी, बस एक ही अरदास है की मेरा बेटा जल्द ही वापस आ जाये जिससे मैं इस जीवन को त्यागने से पहले उसकी खुशियों में शामिल हो सकू.

Source for Image: http://blissfullydomestic.com/life-bliss/retail-me-not-mothers-day-promotion-7-days-7-ways-to-win/123131/

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