कहने वाले कहते हैं कि कहीं और शादी हो ना हो पर हमारे देश में शादी तो होनी ही होनी है. वैसे तो होनी को कौन टाल सकता है, मगर आज के समय में शादी कर पाना किसी प्रोजेक्ट से कम नहीं रह गया है. पूरी शिद्दत से इस प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुचने का हौसला होना केवल काफी नहीं रह गया है, इस कार्य को पूर्ण रूप से संपन्न करने के लिए वहां कहीं ऊपर बैठे हुए हमारे इश्वर के आशिर्वाद की भी अत्यंत ज़रुरत पड़ती है.
आज कल तो माता पिता भी कभी कभी अपने बेटे या बेटी से ये उम्मीद रखते हैं कि वे किसी अच्छे से लड़की या लड़के को पसंद करके उनके सामने प्रकट कर दे जिससे वो इस पूरे लड़के या लड़की को ढूँढने के परिक्ष्रम से बच जाये. और खुदा ना खास्ता अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो सबसे पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ जिसपे वो अपना ध्यान केन्द्रित करते है, वो है कि लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद आने चाहिए.
कल ही मैं अपनी नानी जी से बात कर रहा था. “बेटा हमारे समय में तो हमारे माता पिता ही लड़का पसंद करके आ जाते थे और हमें वही शादी के लिए अपनी रजामंदी देने के सिवा कोई और चारा नहीं होता था. फूटी किस्मत देखो मेरी, तुम्हारे नानाजी से शादी कर मैं कितना पछता रही हूँ ;). आज का ज़माना तो बदल गया है. तुम लोगों को तो पहले लड़की पसंद आनी चाहिए वरना तुम लोग तो ऐसे हो कि मंडप से ही भाग जाओगे. वैसे मेरा मानना है कि समय के साथ साथ इंसान की सोच में भी परिवर्तन आना अत्यंत आवश्यक है, वरना हम जैसे नाना नानी और दादा दादी तुम्हारी पीढ़ी के लोगों को कैसे समझ पाएंगे 🙂 और ये दोनों पीढ़ियों के लिए अच्छा है. इसी से घर में शान्ति बरकरार रहती है और एक अत्यंत ही खुशियों से पूर्ण वातावरण घर में बना रहता है. ”
ये तो रही घर में खुशियाँ बरकरार रहने की बात. लेकिन खुशियाँ तो तब आएँगी जब पहले एक सुशील और अच्छी बहु घर में आएगी. ये बहु को चुनने की प्रक्रिया भी अजीब ही होती है. शुरू में दोनों परिवारों के बड़े एक दूसरे से मिलते हैं. अगर सब कुछ उन्हें ठीक लगता है, तभी लड़के को लड़की से मिलवाया जाता है. बहुत बार ऐसा होता है कि बात दोनों परिवारों के बड़ों तक ही सीमित रह जाती है.
लड़के और लड़की को मिल पाने का मौका भी नहीं मिल पाता है. और मान लो सब कुछ जान भूजने के बाद अगर लड़का लड़की इश्वर कि कृपा से मिलते भी हैं, तो भी उन्हें ये समझ नहीं आता कि वो एक दूसरे से ऐसी क्या बात करें कि उन्हें ये पता चल जाये कि वही उनके लिए सही जीवनसाथी है. ऐसे में बातें एक दूसरे की हौबीस तक ही सीमित रह जाती हैं. हाँ एक दूसरे को देख कर मन में शादी के लड्डू ज़रूर फूटते नज़र आ सकते हैं.
मिलने के पश्चात, दोनों परिवार अपने बच्चों के हाथ धोके पीछे पढ़ जाते हैं ये जानने के लिए कि उन्हें जीवनसाथी के रूप में मिलवाया गया इंसान कैसा लगा. अगर जवाब हाँ में होता है तब तो मानो दोनों परिवारों की समस्या का समाधान हो जाता है, लेकिन अगर जवाब ना में होता है तो फिर लड़की और लड़के दोनों को इस ना के पीछे छुपे राज़ का पर्दा फाश करने को कहा जाता है और एक बार फिर दोनों परिवार अपने बच्चों की ना को हाँ में बदलने के लिए एक बार फिर पूरे तन्न मन धन से उनके पीछे लग जाते हैं.
अगर मामला गंभीर होता नज़र आता है और बच्चों की सोच उनको सही लगती है, तो परिवार के बुजुर्ग अपने बच्चों की बात मान लेते हैं और फिर से किसी और परिवार के साथ यही प्रक्रिया को शुरू करने में लग जाते हैं और तब तक लगे रहते हैं जब तक वो इस कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण ना कर ले.
एक ओर जहाँ माता पिता अपने प्रयास को आगे बढ़ाते हैं, वहीँ दूसरी ओर लड़का थक हार कर अपने मन में बसे अपने जीवन साथी की तस्वीर को थोडा सा और सच्चाई के करीब लाने की कोशिश में लग जाता हैं. शुरू में तो सबको कैटरिना जैसी लड़की ही चाहिए होती है, धीरे धीरे उनको समझ में आ जाता है, की अगर उन्हें शादी करनी है तो शायद उन्हें किसी आम लड़की को ही अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करना होगा, क्योंकि वो भी कोई रणबीर तो है नहीं कि उन्हें कैटरिना मिल जाये.
अन्तथा पूरी शिद्दत से करे हुए प्रयत्न हेतु ऐसा दिन आ ही जाता है जब लड़का लड़की के साथ साथ दोनों परिवारों का मिलन होता है. जहाँ एक तरफ दोनों परिवारों के सदस्य जीवन के इस पड़ाव की खुशियों में डूब जाते हैं, वहीँ दूसरी तरफ, वहीँ उपर बैठे हमारे इश्वर उनके इस हर्षो उल्लास को देखकर मन ही मन कह रहे होते हैं, “बेटा अभी तो ज़िन्दगी शुरू हुई है, आगे आगे देखिये होता है क्या” 😉
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