कहते हैं किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं,
तो क्या ये चाहने में कमी का असर है, या फिर हालातों का फितूर जो कुछ लोग इसी दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाते हैं.
हर कोई तेंदुलकर या धोनी तो नहीं होता, पर सब द्रविड़ जैसी मेहनत तो कर ही सकते हैं, फिर क्यों कुछ लोग अपने हुनर का सदुपयोग नहीं कर पाते.
हर कोई सीईओ तो नहीं बन सकता, पर क्यों वो सीईओ बनने के ख्वाब भी देखना भूल जाते हैं, क्या उनमें हिम्मत नहीं होती, या वो इसे अपने से परे समझ कर, उसकी इच्छा रखने का साहस ही नहीं कर पाते.
क्यों मन में इतना डर, क्यों दिल में इतनी असुरक्षा की भावना हमें आगे बढ़ने से रोक देती है.
क्यों वो आखरी ओवर में १५ रन बनाना असंभव लगने लगता है, क्यों हम प्रयत्न करने से पहले ही हार मान लेते हैं.
जहाँ ज्यातादर लोग, अपने को इस सोच में उलझा हुआ पाते हैं, वही कई लोग ऐसे भी हैं, जो इन बातों पे जीत पा कर इनसे ऊपर उठ जाते हैं, और उन्ही को चढ़ता सूरज इत्यादि जैसे वाक्यों से सम्भोदित किया जाता है.
तो क्या ऐसे लोग बाकी लोगों से अलग होते हैं, क्या उनकी परवरिश किसी ख़ास प्रकार से की जाती हैं, या फिर खुद ही वो अपने को इतना बुलंद कर लेते हैं, कि खुदा भी उनकी रज़ा के सामने झुक जाता है.
जो भी हो, वो इतने भी अलग नहीं होते कि उनकी तरह कोई और बन ना पाए. आखिर गवास्कर के बाद किसने सोचा था कि एक तेंदुलकर आ जायेगा, और तेंदुलकर के बाद किसने सोचा था कि एक कोहली आ जायेगा.
ये वो लोग हैं, जिनको भरोसा होता है, कि वो कुछ कर सकते हैं. ये वो लोग हैं जो दिन भर रात भर केवल उसी सपने को जीते हैं, ये वो लोग हैं, जिनके लिए जीना अपने को उस एक लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित करने के बराबर बन जाता है.
ये लोग उन अनेक लोगों से आगे बढ़ जाते हैं, जो हुनर होने के बावजूद, इसी दुनिया के किसी कोने में अपने को खोया हुआ पाते हैं.
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