Being caught up in the आपा धापी of life, there are very few occasions when you end up feeling like what I did today,
or
To put it in other words, on very few occasions do we end up taking notice of the same.
Sharing a few lines in my effort to express what it is:
कभी भूले भटके, ज़िन्दगी अपने से परे लगती है,
कभी भूले भटके, कायनात कुछ और हसीन लगती है,
कभी भूले भटके, चहचहाती चिड़ियाँ दिखती हैं,
कभी भूले भटके, ये हवा चेहरे को छूती है,
कभी भूले भटके, किसी और का ख्याल आता है,
कभी भूले भटके, इंसान इंसान नज़र आता है,
कभी भूले भटके, खुद का पता नहीं चलता,
कभी भूले भटके, इस मदहोशी का आलम आता है,
कभी भूले भटके, मन बेतहाशा सा हो जाता है,
कभी भूले भटके, वही मन कुछ गुनगुनाता है,
कभी भूले भटके, भटकना भी रास आता है,
कभी भूले भटके, उसी भटकने का अंदाज़ पसंद आता है.
और अगर, आपको ये अहसास कभी ना हुआ हो, तो कभी भटक कर तो देखिये,
भूले भटके ही सही, आप उस राह पहुंच ही जायेंगे,
जहाँ भटकना ही शायद इस जीवन का आगाज़ कराता है.
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