लम्हों का याद आना, उनमें खो जाना,
एक आदत सा बन चुका है,
कश्ती का पास आना, हवा का छू के निकल जाना,
एक एहसास सा बन चुका है,
तैरना तो कभी हमने सीखा ही ना था,
हर पल में डूब जाना एक फितूर सा बन चुका है,
इस ज़िन्दगी के सफर की क्या ही बताऊँ,
वक़्त का ऐसे गुज़र जाना, चाहत सा बन चुका है,
कहते हैं, ख्वाइशों का कोई अंत नहीं होता,
इन ख्वाशों के पार भी एक दुनिया है,
फ़िक्र तो होती है उस दुनिया के बारे में सोच के,
वो एक पल सारी फ़िक्र छोड़ के आगे बढ़ चुका है.
Source for the Image: https://www.goalcast.com/2016/06/23/how-to-seize-the-moment/