वैसे तो हर नयी सुबह की पहली किरण एक नया एहसास ले ही आती है,
इस नए साल की सुबह कुछ हसीन ख़याल और इत्तेफ़ाक़ ज़रूर ले आयी,
आखिर पूरे डिकेड का सवाल जो था,
कभी कभी ज़िन्दगी का रुख बदलने के लिए एक लम्हा ही काफी होता है,
वजह कुछ भी हो सकती है इस परिवर्तन की,
चाहे वो नज़रों का नज़रों से टकरा जाना हो,
या
उस एक मुस्कराहट के लिए दुनिया के सफर पे निकल जाना,
चाहे उस रात का दिल बहल जाना हो,
या
उस छवि का दिल में बस जाना,
चाहे उन कापते हुए हांथों का थाम लेने की चाह हो,
या
किसी के लिए कुछ कर जाने का जज़्बा,
हर वो लम्हा एक यादो की कड़ी पिरो ही देता है,
कभी भागते थे जिस याद से,
आज उसी को सिमटा के कहीं बैठ जाते हैं,
यही कुछ यादें ही तो है जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का दर्ज़ा देती है,
कभी पूछेंगे इस ज़िन्दगी से सवाल,
ऐ ज़िन्दगी तू कहाँ थी कभी जो अभी अभी यहाँ है,
शायद डूब जाना ही तो है,
या
डूब के खुद को पा लेने का नाम-ये ज़िन्दगी
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