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कहते हैं पहला एहसास, पहली नज़र, सब कुछ पहला पहला बहुत ही अच्छा लगता है. शायरों ने तो इसपे पूरी किताबें लिख डाली हैं.
सच मान, मैंने भी पहली बार इसका स्पर्श करने की चाहत लिए एक सुट्टे की दुकान पे पहुंच ही गया. सन २०००, शहर लखनऊ, दिन के १२ बजे, कोचिंग क्लास से बहार आने का किस्सा.
पहली बार कुछ भी हमेशा किसी प्रिये के साथ ही होता है. हम उसे अमेरिकन चूहे से सम्भोदित करते थे, इसलिए नहीं कि वो हमेशा अमेरिका जाने की बात करता था, पर इसलिए क्योंकि उसने अपने को पूर्ण तरह से अमेरिकन बना लिया था, चाहे वो उसका बोलने का तरीका हो या फिर उसका रहन सहन.
वैसे सोचा जाये तो ठीक भी था, क्योंकि पहले से तैयारी करके जाने पे हमेशा आपको किक स्टार्ट तो मिलता ही है.
इसी किक स्टार्ट की खोज ने शायद हम दोनों को उस सुट्टे की दुकान पे जाने पर मजबूर कर दिया था.
थोड़ा मन में डर था, क्योंकि माँ ने हमेशा इससे दूर रहने की हिदायत दी थी, लेकिन कुछ नया करने का अजीब सा उत्साह भी था.
अब इसे जवानी का जोश कहें या फिर नादानी, आज हम दोनों ही ढृढ़ निश्चय करके आये थे कि आज कुछ तूफानी करके ही मानेंगे.
“भइया, एक क्लासिक माइल्ड”, बोल हमें ऐसा लगा मानो जैकपोट मिल गया हो. इतनी ख़ुशी शायद हमें मैथ में पूरे नंबर मिलने पे भी नहीं मिलती थी.
तीन बार कोशिश करने पे माचिस से हम उस सुट्टे को जला पाए. आखिर पहली बार था, इतना एफर्ट तो मारना बनता था.
“अबे सुना है, पूरा अंदर लेना होता है. और आँख बंद करके मारो तो मज़ा दुगना हो जाता है”, अमेरिकन चूहा पूरी रिसर्च करके आया था.
उसको गुरु मान मैंने पूर्ण तरह से वही किया जैसा उसने कहा, मानो वो धुंआ मुझे एक नयी दुनिया में ले गया, वो भी खासते खासते.
थोड़ा अच्छा लगा, थोड़ा बुरा, लेकिन चूहे के सामने कैसे मैं मुकर सकता था, “ग़दर है यार ये तो”.
चूहे ने भी हाँ में हाँ भर दी, मानो १०० साल से सुट्टा मार रहा हो, “कहाँ था ना मैंने”.
कश-कश कर पूरा ख़तम करने पर मेरे चेहरे पे चिंता के भाव देख वो बोला, “भाई, माउथ फ्रेशनर लाया हूँ, काहे परेशान हो रहे हो.” यह सुन, फिर हर्षोल्लास का समां बन गया.
सफर तो शुरू हो चुका था, बस सफर करना अभी बाकी था.
Source for the Image: http://facebook.com/Sutta4G
हर रोज़ की तरह आज भी मैंने दिव्य वाहन Uber में ऑफिस जाने का प्रण लेते हुए ऐप पे गाड़ी बुक कर ही ली.
ना जानते हुए कि ये सफर आज मुझे अपने बारे में एक नए पहलू से अवगत कराएगा.
थोड़ी देर बाद एक घनी दाढ़ी वाले भाई साहब स्विफ्ट डिज़ायर में प्रकट हुए, मानो एनवायरनमेंट चेंज को रोकने का सारा ज़िम्मा अपने चेहरे पे जंगल रुपी दाढ़ी उगाते हुए इन्ही ने लिया हो.
मुस्कुराते हुए गुड मॉर्निंग हुई और राइट स्वाइप कर उन्होंने ट्रिप चालू कर दी. मैं रोज़ की तरह दीन दुनिया को भूल न्यूसपेपर पढ़ने में जुट गया, मानो सिविल सर्विसेज का एग्जाम आज क्लियर कर के ही मानूंगा.
कुछ क्षण चल ड्राइवर साहब ने पीछे देखा और बोले: “सर थोड़ा सा लगी है, क्या मैं गाड़ी रोक कर हल्का हो लूँ“.
मैंने बिना कुछ सोचे उनके हालात को समझते हुए रज़ामंदी दे दी.
जैसे ही वो नीचे उतरे मेरा ध्यान सुनसान सड़क पे खड़ी हमारी गाड़ी पे गया जहाँ दूर दूर तक किसी प्राणी का कोई भी नामोनिशान ना था.
दिल में अचानक बुरे ख्यालों ने दस्तक दी, और कश्मीर में गाड़ियों में हो रहे धमाकों की छवि आँखों के समक्ष प्रकट हो गयी. ये शायद ज्यादा न्यूसपेपर पढ़ने का असर था.
पीछे मुड़ के देखा तो दाढ़ी वाले ड्राइवर साहब मानो दो कोस दूर जा चुके थे.
काउंटडाउन शुरू हो चुका था. जल्दी से न्यूसपेपर को बगल में रख गाड़ी से फरार होने का मैंने निर्णय ले लिया.
जैसे ही मैंने अपने दरवाज़ा को खोला और उतरना चाहा, तभी एक आवाज़ से मेरी रूह काँप उठी: “सॉरी सर, रुकने के लिए. क्या करूँ आगे कोई जगह नहीं मिलती“.
यह बोल ड्राइवर साहब गाड़ी में बैठे और खुद को पायलट और गाड़ी को हवाई जहाज़ बना कर वहां से उड़ चले.
ऑफिस पहुंच मैंने उन्हें थैंक यू बोला और गाड़ी से नीचे उतर गया.
दिल अभी भी कुछ ज्यादा ही धड़क रहा था. मन बोला अब तो फ़िक्र को धुएं में उड़ाना बनता है.
एक सिगरेट शॉप पे पहुंच जैसे ही सुट्टा मांगने वाला था, तभी उस कश्मकश के परदे को समझ भूज ने फाड़ते हुए एक सवाल पूछ लिया: “#Sutta4G जो करते रहते हो, उसका क्या?”
तब जाना, कभी कभी आपकी समझदारी आपको शर्म से पानी पानी होने पे मजबूर कर देती है.
“भाई साहब, बाद में आता हूँ“, बोल मैं ऑफिस की ओर बढ़ गया.
चलते चलते समझ ने हस्ते हुए और मरहम लगाते हुए बोला: “इस सुट्टे के पैसे से आज किसी गरीब को खाना खिला देना“.
ये सुन मेरा मन फिर एक निश्चय रुपी हर्ष से भर उठा और बोला: “Break the Habit. Do Good. #Sutta4G”
Source for the Image: https://www.facebook.com/Sutta4G/