Carrying on with my love affair of trying to get into some other person’s shoes or sandals as the case may be 😉 , here I am, again making an attempt at trying to understand the feelings and emotions that a person might be going through, thinking what if he is unable to meet the love of his life for the last and final time. I would like to title it as एक आखरी मुलाक़ात !
कभी कभी किसी से दूर चले जाने का एहसास इतना दर्द नहीं देता जितना कि ये सोच कि हम उस किसी ख़ास से आंखरी बार नहीं मिल पाए तो. उस दिन मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था. जहाँ एक ओर उस किसी ख़ास से एक आंखरी बार मिलने के लिए दिल बेकरार था, वहीँ दूसरी ओर इस बात का डर भी था कि उसने मिलने से मना कर दिया तो.
इसी उधेर बुन में मैंने उसे एक आंखरी बार फ़ोन करने का निश्चय किया. बहुत देर तक फ़ोन की घंटी बजती रही पर किसी ने फ़ोन नहीं उठाया. हताश हो कर, मैं जैसे ही एअरपोर्ट के लिए निकलने ही वाला था, तभी मेरा फ़ोन बज उठा. अपने मोबाइल पर प्रकट होते हुए नंबर को देख के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि फ़ोन उसी का था.
कभी कभी आप को खुद नहीं पता होता कि आप ज़िन्दगी से क्या चाहते हैं. बस सभी की तरह आप भी ज़िन्दगी के उस बहाव में अपने आप को छोड़ देते हैं, इस आशा से कि ये ज़िन्दगी आपके साथ अच्छा व्यहवार करेगी. मुझे भी इस बात का ज़रा सा भी अंदेशा नहीं था कि जो मैं करने जा रहा था वो मेरी ज़िन्दगी के लिए सही सिद्ध होगा या नहीं. हाँ पर एक विश्वास ज़रूर था कि जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है.
मैंने जल्दी से फ़ोन को उठाया. मानो मेरी सारी परेशानी दुनिया की सबसे हसीन आवाज़ को सुनकर एक पल के लिए गायब हो गयी. हाँ वो कोई और नहीं, मेरी ज़िन्दगी का वो प्यार थी जिसके लिए बिना कुछ सोचे समझे उसके चेहरे पे एक हसी लाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हो जाया करता था. जिसकी एक झलख मेरे पूरे दिन की थकान को मिटा देती थी. जिसकी एक अदा पे मैं मरने को भी तैयार हो जाता था. जिसका शर्माना मुझे किसी और ही दुनिया में भेज देता था. जिसके कान के वो झुमके मुझे अपनी ओर आकर्षित करते थे. जिसके घुंगराले बालों में मैं अपने को खो देना चाहता था. हाँ वो कोई और नहीं वही लड़की थी जिसके साथ मैंने अपनी ज़िन्दगी बिताने के सपने देखे थे.
“क्या तुम मुझसे मिल सकती हो?” मुझे इस बात की काफी कम उम्मीद थी की वो मुझसे मिलने को तैयार हो जायेगी.
“हाँ, पर केवल थोड़ी देर के लिए.” मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था की इतना सब हो जाने के बाद भी वो मुझसे मिलने को तैयार हो गयी थी.
मुझे खुद नहीं पता था कि मैं उससे मिल के क्या कहूँगा. हमारे बीच वैसे भी सब कुछ ख़तम ही हो गया था. क्या मुझे इस बात की उम्मीद थी कि वो मेरे पास फिर से एक बार लौट आयेगी? क्या मैं एक बार फिर से उस बीतें हुई ज़िन्दगी को वापस लाना चाहता था? क्या मेरा उसके प्रति प्यार मुझे जाने कि इजाज़त नहीं दे रहा था? क्या मैं चाहता था कि हम दोनों फिर से एक बार साथ हो जाए? क्या उसे अपने से दूर जाता हुआ देख मैं अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था? इन सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था या शायद मैं इन जवाबों को जान कर भी स्वीकार नहीं करना चाहता था.
शायद मुझे इसी पल का इंतज़ार था. शायद इतने दिनों से मैं इसी मौके की तलाश में था. शायद यही वो मेरी ज़िन्दगी का निर्णायक पल होने वाला था. शायद यही वो आंखरी मौका था जब मैं उसे एक बार फिर से इस बात के लिए राज़ी कर सकता था कि हम फिर से एक साथ हो जाये. और इस बार मैं अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं करना चाहता था. मुझे पता था कि गलती मुझसे ही हुई थी पर इसका मतलब ये तो नहीं था कि हम अलग हो जाये. आखिर गलती हर इंसान से होती है. बड़प्पन तो इसी में होता है कि हम उन गलतियों को अनदेखा कर अपनी ज़िन्दगी को और हसीन बनाने की कोशिश करें.
उसे सामने देख जहाँ एक ओर मैं बेहद खुश था वहीँ दूसरी ओर मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसको कैसे राज़ी करूंगा. बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी.
“तुम्हे पता है कि मैंने ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा प्यार आज तक किसे किया है? वो कोई और नहीं तुम हो. हाँ मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है. मुझे तुम्हे पहले ही सब कुछ बता देना चाहिए था, पर इसके लिए क्या तुम मुझे इतनी बड़ी सज़ा दोगी. क्या मुझे अपनी गलती सुधारने का एक मौका भी नहीं मिलेगा? मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. फिर से हम उन्ही पुराने दिनों में वापस लौट जायेंगे. क्या तुम मेरे साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिताना चाहती?….” कहते कहते मैं चुप हो गया. उसकी दोनों आँखों से आंसुओ की लड़ी बह रही थी. बिना कुछ बोले मैंने उसको अपनी बाहों में ले लिया.
“मैं इतने दिनों तक यहीं सोचती रही कि तुमने मुझसे बात करने की कोशिश क्यों नहीं करी. और फिर एक दिन मुझे तुम्हारे ही एक दोस्त से पता चला की तुमने ये देश छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया है. इसी उम्मीद में कि तुम मुझे एक फ़ोन तो करोगे, मैं तुम्हारा इंतज़ार करती रही, पर तुम्हारा फ़ोन नहीं आया. तुम्हे पता है अगर आज तुम्हारा फ़ोन नहीं आता तो मैं पूरी तरह से टूट जाती. क्या तुम्हे हमारे रिश्ते पे इतना सा भी भरोसा नहीं था? क्या तुम्हे मुझपे भरोसा नहीं था? मैंने तुम्हारा हर स्थिति में साथ देने का वादा किया था, तो फिर मैं अपने वादे से पीछे कैसे हट सकती थी? क्या तुम इतनी आसानी से मुझे छोड़ के चले जाते?” मैंने गलती तो की ही थी, पर उससे बड़ी गलती ये थी कि मैंने उसे सुधारने का भी कोई प्रयत्न नहीं किया था.
मुझे पता था कि मुझे इश्वर ने अपनी गलती सुधारने का एक मौका और दे दिया था. मुझे पता था कि एक बार फिर से वो मेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ भरने को तैयार हो गयी थी. आप चाहे जो भी कहें, लड़कियां हम लड़कों से ज्यादा समझदार और भावनात्मक रूप में हम लड़कों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली होती हैं. साथ ही साथ उनमें क्षमा भाव भी हम लडको से सामान्य रूप में ज्यादा ही होता है.
कहते हैं अंत भला तो सब भला, पर कभी कभी इस बात को मैं सोच के डर जाता हूँ कि अगर उस दिन मुझे वो आंखरी मुलाकात करने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ होता तो क्या होता. इसलिए मेरी आप सभी से गुजारिश है कि अपने साथी से कुछ ना छुपाये. विश्वास एक ऐसी बुनियाद है जिसपे हर रिश्ता अपना अस्तित्व निर्धारित कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ता है. इसलिए इस विश्वास की नीव को कभी भी कमज़ोर ना होने दे.
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